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म॒हो विश्वाँ॑ अ॒भि ष॒तो॒३॒॑ऽभि ह॒व्यानि॒ मानु॑षा । अग्ने॒ नि ष॑त्सि॒ नम॒साधि॑ ब॒र्हिषि॑ ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

maho viśvām̐ abhi ṣato bhi havyāni mānuṣā | agne ni ṣatsi namasādhi barhiṣi ||

पद पाठ

म॒हः । विश्वा॑न् । अ॒भि । स॒तः । अ॒भि । ह॒व्यानि॑ । मानु॑षा । अग्ने॑ । नि । स॒त्सि॒ । नम॑सा । अधि॑ । ब॒र्हिषि॑ ॥ ८.२३.२६

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:23» मन्त्र:26 | अष्टक:6» अध्याय:2» वर्ग:14» मन्त्र:1 | मण्डल:8» अनुवाक:4» मन्त्र:26


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शिव शंकर शर्मा

उसकी प्रार्थना दिखलाते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (अग्ने) हे सर्वाधार ईश ! (बर्हिषि+अधि) तू मेरे हृदयासन के ऊपर (नमसा+नि+सत्सि) नमस्कार और आदर से बैठ। (वहः) महान् (विश्वान्) समस्त (सतः) विद्यमान पदार्थों के (अभि) चारों तरफ व्याप्त हो तथा (मानुषा+हव्यानि) मनुष्यसम्बन्धी पदार्थों के (अभि) चारों तरफ बैठ ॥२६॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा यद्यपि सर्वत्र विद्यमान ही है, तथापि मनुष्य अपने स्वभाव के अनुसार प्रार्थना करता है और परमात्मा के सकल गुणों का वर्णन केवल अनुवादमात्र है ॥२६॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (अग्ने) हे शूर ! (महः, विश्वान्, सतः) सब बड़े सज्जनों के (अभि) प्रति (मानुषा, हव्यानि) मनुष्यसम्बन्धी हव्यों के प्रति (अधि, बर्हिषि) यज्ञ वेदी के प्रति आप (नमसा) स्तुति करने पर (निषत्सि) अवश्य उपस्थित होते हैं ॥२६॥
भावार्थभाषाः - उपयुक्त गुणसम्पन्न योद्धाओं को भी उचित है कि वे वैदिक यज्ञ को आस्तिकभाव का कर्म समझकर सब विद्वानों, हव्य पदार्थों तथा यज्ञवेदी के प्रति नम्रतापूर्वक आकर उपस्थित हों ॥२६॥
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शिव शंकर शर्मा

तस्य प्रार्थनां दर्शयति।

पदार्थान्वयभाषाः - हे अग्ने=ईश ! बर्हिषि+अधि=हृदयासने। त्वम्। नमसा=नमस्कारेण। निषत्सि=निषीद। महः=महतः। विश्वान्=सर्वान्। सतः=विद्यमानान्। अभि=अभितो निषीद। मानुषा=मनुष्यसम्बन्धीनि। हव्यानि। अभि=अभिव्याप्य निषीद ॥२६॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (अग्ने) हे शूर ! (महः, विश्वान्, सतः) सर्वान् महतः सज्जनान् (अभि) अभितः (मानुषा, हव्यानि) मानुषाणि हव्यानि अभि (अधि, बर्हिषि) यज्ञवेदिं च (नमसा) स्तुत्या (निषत्सि) अधितिष्ठसि ॥२६॥